राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद पशुपति कुमार पारस ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है पशुपति पारस ने बीजेपी पर खुद के साथ अन्याय करने का आरोप लगाया है। पशुपति पारस का इस्तीफा बिहार में एनडीए में सीटो के बंटवारों के एक दिन बाद आया।
पशुपति पारस ने क्यों दिया इस्तीफा?
सोमवार को बिहार में एनडीए में सीटों की साझेदारी में पशुपति कुमार पारस के पार्टी को कोई भी सीट नहीं दी गई थी। जिसके चलते पशुपति कुमार पारस नाराज थे।
पशुपति कुमार पारस हाजीपुर से लोकसभा के सांसद हैं और लोजपा में टूट होने के बाद पार्टी के अन्य चार सांसद भी उनके साथ ही थे।
पशुपति पारस का कहना है, “मैं ईमानदारी से एनडीए की सेवा की नरेंद्र मोदी बड़े नेता हैं, सम्मानित नेता भी हैं, लेकिन हमारी पार्टी के साथ और व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ नाइंसाफी हुई है। इसलिए मैं भारत सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से त्यागपत्र देता हूं।”
पशुपति कुमार पारस लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के भाई हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया गया था। इन चुनाव में लोजपा को 6 सीटों पर जीत मिली थी इनमें हाजीपुर, जमुई, समस्तीपुर, नवादा, खगड़िया और वैशाली सीट भी शामिल है।
पशुपति कुमार पारस ने कहा यह अन्याय और अपमान है
बिहार की राजधानी पटना में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति के कार्यालय में एक सन्नाटा पसरा है। लोजपा का यह कार्यालय रामविलास पासवान के राजनीतिक सफर का गवा रहा है।
महज 3 साल पहले लोजपा में मची सियासी उठापटक में यह कार्यालय और रामविलास पासवान के सियासी विरासत का बड़ा हिस्सा उनके भाई पशुपति कुमार पारस के कब्जे में आ गया था।
इस कार्यक्रम में कुछ कार्यकर्ता जरूर मौजूद है जो अपने नेता पशुपति पारस के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं।
पशुपति कुमार पारस अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर खुद को मोदी का परिवार बता रहे थे लेकिन हिस्सेदारी में परिवार से कुछ नहीं मिलने पर पारस की पार्टी के समर्थक और कार्यकर्ता नाराज है।
आरएलजेपी के प्रवक्ता चंदन कुमार कहते हैं “हमें बिल्कुल अंदाजा नहीं था, कि हमारे साथ इस तरह का विश्वास घात अपमान और अपमान होगा।
हमारे सांसदों की अपने इलाके में बड़ी लोकप्रियता है, पर ऐसा लगता है कि किसी ने इनको (बीजेपी) को भ्रमित किया है।
चंदन कुमार का कहना है कि “चिराग पासवान मोदी की सभा तक में नहीं गए, जबकि हम एनडीए के साथ ईमानदारी से जुड़े हुए थे, हम लड़ेंगे और जहां-जहां हमारे सांसद थे वहां वहां से लड़ेंगे।”
पशुपति कुमार पारस का चुनावी सफर
पशुपति कुमार पारस सबसे पहले जनता पार्टी के टिकट पर साल 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने थे।
बिहार के खगड़िया जिले की एससी के लिए सुरक्षित अलौली सीट से साल में 1969 के विधानसभा चुनाव में रामविलास संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार जीतकर विधायक बने थे।
साल 1974 में जयप्रकाश नारायण की आंदोलन से जुड़ने के बाद रामविलास पासवान हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और अलौली विधानसभा सीट से अपने भाई पशुपति पारस कुमार को खड़ा किया था।
पशुपति पारस सात बार बिहार विधानसभा के सदस्य रहे, वो बिहार विधानसभा परिषद के सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री के पद पर भी रहे।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने चुनावी राजनीति को छोड़कर एक बार फिर अपने भाई को अपने ही सीट से चुनाव लड़वाया इस बार बारी हाजीपुर लोकसभा सीट की थी।
पशुपति पारस हाजीपुर सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने। उनको नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री भी बनाया गया। पशुपति पारस को भी फूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री मिली थी जो पहले रामविलास पासवान के पास थी।
पशुपति पारस अब क्या रास्ता अपना सकते हैं
पशुपति पारस सब करीब 72 साल के हो चुके हैं और माना जाता है की उम्र की वजह से उनकी राजनीतिक सक्रियता पर भी असर पड़ा है।
पशुपति पारस लगातार हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। बिहार में चर्चा यह भी है कि पशुपति पारस राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव से भी बात कर सकते हैं।
हालांकि उन्हें महागठबंधन शामिल करने से विपक्ष को कितना फायदा होगा यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है।
पशुपति कुमार पारस अपने उम्मीदवारों को बिना किसी भी गठबंधन के चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।