बिहार में बीजेपी ने चिराग पासवान को क्यों चुना?
बीजेपी की अगुवाई वाला गठबंधन एनडीए लोकसभा चुनाव के लिए सीटों की साझेदारी की घोषणा कर दी है। राज्य की 40 लोकसभा सीटों में 17 पर भाजपा 16 पर जेडीयू 5 पर चिराग पासवान की लोजपा चुनाव लड़ेगी। एक – एक सीट जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के हिस्से में आई है।उपेंद्र कुशवाहा को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है क्योंकि सोमवार को सीटों की साझेदारी की घोषणा हुई तो उपेंद्र कुशवाहा संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित नहीं थे।इस साझेदारी में रामविलास पासवान के भाई और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस के हिस्से में कुछ नहीं आया है। साल 2019 के मुकाबले में दो नए साझेदारों को NDA में शामिल करने के लिए नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने अपनी दो सीट छोड़ दी है।
एलजेपी(आर) के हिस्से में आई सीट
वैशाली हाजीपुर समस्तीपुर खगड़िया और जमुई की सीटे आई हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि लोजपा के हिस्से में 6 सीटे आई थी।2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू केवल किशनगंज लोकसभा सीट पर हारी थी और बाकी सभी सीटों पर NDA को जीत मिली थी।
चिराग पासवान की जीत
सीटों की साझेदारी में जिस पार्टी का हाथ खाली रहकर चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस के लोक जनशक्ति पार्टी को कोई भी सीट नहीं मिली।खास बात यह है कि साल 2021 में लोजपा में टूट होने के बाद पशुपति कुमार पारस बीजेपी के साथ थे और वह मंत्री पद पर भी थे। चिराग पासवान अकेले रह गए थे लेकिन पार्टी में टूट के बाद भी चिराग पासवान बिहार की राजनीति में सक्रिय रहे और लगातार सभाएं और रैली करते रहे वहीं पशुपति पारस को जमीनी स्तर पर बहुत सक्रिय नहीं देखा गया। साल 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद साल 2021 में उनकी पार्टी लोजपा दो हिस्सों में टूट गई थी इस टूट में पार्टी के पांच सांसद पशुपति कुमार पारस के साथ आ गए थे।
चिराग की चतुराई
पार्टी में टूट के बाद माना जाता था कि चिराग के मन में बीजेपी को लेकर नाराजगी है हालांकि बाद में चिराग ने बीजेपी को लेकर संतुलित रवैया अपनाया। बीजेपी से दूर रहकर भी चिराग पासवान ने राजनीतिक चतुराई का इस्तेमाल किया।
साल 2020 के बिहार का चुनाव के बाद से ही वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देते रहे। यह सिलसिला कुछ दिन पहले वैशाली में हुई चिराग पासवान की रैली तक मौजूद रहा लेकिन उन्होंने भाजपा के खिलाफ कभी भी मोर्चा नहीं खोला इस दौरान चिराग पासवान ने राष्ट्रीय जनता दल से भी अपने संबंध मधुर बनाए रखें।
वह तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में भी दिखे और लालू परिवार के साथ पारिवारिक रिश्ते की भी बात करते रहे। हालांकि चाचा पशुपति पारस से तल्खी और उनके केंद्र सरकार में मंत्री बने रहने के बाद भी चिराग ने बीजेपी से अपना हाथ पूरी तरह नहीं खीचा और कभी राजद की खेमे में नहीं गए। बिहार में पासवान बिरादरी के करीब 5.3 प्रतिशत वोट हैं पिछले कई चुनाव के आधार पर माना जाता है की एलजेपीआर के पास बिहार में करीब 6 फ़ीसदी वोट है और इनमें बड़ा हिस्सा पासवान वोटरो का है।
लोजपा में टूट के बाद पशुपति पारस के गुठनी भले ही कोई चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन कई मौके पर चिराग पासवान ने साबित किया है कि लोजपा के परंपरागत और उनके पास है।
लोजपा के वोटर चिराग के साथ
चिराग पासवान ने साल 2020 के बिहार चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी को बिना किसी गठबंधन के चुनाव मैदान में उतारा था। उन चुनाव में पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिली थी, लेकिन करीब 7 फ़ीसदी वोट मिले थे पार्टी में टूट के बाद चिराग पासवान के गुट ने साल 2021 की अंत में बिहार में दो सीटों पर विधान सभा उपचुनाव लड़े थे इन दोनों सीटों पर पार्टी ने अपनी उम्मीदवारों को बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतारा था और उन्हें करीब 6 फीसदी वोट मिले थे। चिराग के साथ वोटो की इस ताकत को देखते हुए भाजपा ने भी कुढनी समेत बिहार के कई विधानसभा उपचुनाव में चिराग पासवान से अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार कराया था।